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'नाम' भर का 'वाम'..-लेख

' नाम' भर का 'वाम'... इस चुनाव में ये सिद्ध हो गया है कि भारत में 'वाम' अब 'नाम' भर का रह गया है। और ये भी है कि ये कोई एकदम से नहीं हो गया। इसका अपना लम्बा इतिहास रहा है। मेरी समझ में इसके तीन कारण हैं- 1. अनगिनत वाम-पार्टियाँ- लोकतांत्रिकता के नाम पर 'लीड' भूमिका में आने के लिए और अपनी 'एनालाइज्ड' विचारधारा को 'भारतीय' रूप में सबसे बेहतरीन साबित करने में लिए ये वामी लोग लगातार बंटते चले गए और एक-दूसरे को गरियाते रहे। जिसके कारण इनमें आपसी एकता और सहमति का अभाव रहा और मतभेद बढ़ते चले गए। 2. कथनी और करनी में अंतर- आज़ादी के बाद से लेकर आज तक का इतिहास है, इनकी कथनी और करनी में अंतर रहा है। आधुनिकता के नाम पर ये शुरू से अपने को 'एलीट' बनाये रहे। बुर्जुआ, मजदूर, किसान, सर्वहारा आदि सिर्फ इनकी जुबान तक रहे। फाइव स्टार होटल में बैठकर और अंग्रेजी में 'एनालिटिकल' लेख लिखकर ये लोग 'क्रांति' का मसौदा तैयार करते रहे और जनता से दूर होते चले गए। 3. वामी-आडम्बरी - दुनिया की सबसे आधुनिक विचारधारा को भारतीय वामियों ने

माननीय कृषि-मंत्री श्री राधामोहन सिंह जी के नाम खुला-पत्र

वर्तमान केन्द्रीय कृषि मंत्री और पूर्वी चम्पारण (मोतिहारी) से लगातार पाँचवी बार से सांसद माननीय राधामोहन सिंह जी के नाम ग्रामीणों का खुला पत्र - अरेराज अनुमंडल, थाना संग्रामपुर के अंतर्गत गाँव भवानीपुर के हम सभी ग्रामीण दशकों से अच्छी और मजबूत सड़कों की समस्या से जूझ रहे हैं, हालाँकि यह समस्या पूरे बिहार की  दशकों से बदस्तूर बनी हुई है।  हम NH-28 को SH-74 से जोड़ने  वाली सड़क के संदर्भ में बात कर रहे हैं।  यह सड़क  हमारे 24 टोलों के गाँव सहित गाँव धनगढ़हाँ को जिला मुख्यालय मोतिहारी से जोड़ने वाली एक मात्र ''लाइफ-लाइन '' सड़क है। बीच बचाव-मरम्मत के अतिरिक्त तकरीबन 5 किलोमीटर की दूरी वाली यह ''लाइफ-लाइन'' सड़क दशकों से यहाँ के जनप्रतिनिधियों की उपेक्षा का शिकार रही है।  जिसके कारण हम ग्रामीणों को आवागमन के अतिरिक्त फसलों  को ट्रैक्टर आदि से भेजने में पर्याप्त कठिनाईयों का सामना करना पड़ रहा है .. बसों, टेम्पू आदि की सवारी इस सड़क पर जान जोखिम में डालकर करने को हम मजबूर हैं।  कई बार बसों के पलट जाने तक की खबरें आती रहीं हैं।  बरसात के मौसम में खेतों का पानी सड़क पर

मज़दूर- कविता

'अंतरराष्ट्रीय श्रमिक दिवस' पर दुनिया भर के मेहनतकश मजदूरों को समर्पित मेरी यह कविता 'मजदूर', ('जनकृति' में प्रकाशित).. इस गाँव का हो या उस गाँव का हो इसराज्य का हो या उस राज्य का हो इस देश का हो या उस देश का हो इस दुनिया का हो या उस दुनिया का हो, चाहे वो किसी दुनिया का हो मजदूर मजदूर होता है चाहे कहीं का हो. उसकी पहचान गाँव, राज्य,देश-दुनिया कपड़े-लत्ते,रूप-रंग,वेश-भाषा से कहीं अधिक आपत्तियों-विपत्तियों की लहरों से खियाया, घिसा-पिटा उबड़-खाबड़ कहीं छिछला कहीं धँसा उसकी चट्टानी थोबड़ा ही उसकी पहचान है. उसकी पहचान उसके कपार पर गहरी खिंची चिंता की लकीरों को पढ़कर हो जाती है जहाँ उसके मुक्कद्दर में परिश्रम,परिश्रम और सिर्फ परिश्रम मुकर्रर किया गया है. उसकी पहचान उसकी आँखों से होती है जिसमें सपने ही सपने हैं उमंग ही उमंग है उत्साह ही उत्साह है. साथ ही वहीं किसी कोने में जमा मिल जाएंगे वक्त से टकरा-टकराकर काँच से टूटे उसके कुछ सपने और कभी पिघलते गलते बहते मिलेंगे. उसकी पहचान उसके हाथों से होती है उसके बड़े-बड़े बढ़े नाखूनों से होती है उन नाखून

दिल्ली विश्वविद्यालय इन दिनों "गुंडों" और "गुंडागर्दी" का अड्डा बना हुआ है....

दिल्ली विश्वविद्यालय इन दिनों ''गुंडों'' और ''गुंडागर्दी'' का अड्डा बना हुआ है  .... ---------------------------------------------------------------------------------------------                       घटना परसों (04/09/18) की है। आर्ट्स फैक्ल्टी भवन के हिंदी विभाग वाली गली (जिसके ठीक सामने पुराना कनवोकेशन हॉल है) में चंद क्षणों के लिए एक सीनियर भैया से हाथ मिलाने के लिए ठहरा ही था कि इतने में सामने से आ रहे 7-8 लड़कों के एक समूह ने मुझ पर हमला बोल दिया।  दरअसल हुआ यूँ कि जब मैं सीनियर भैया से हाथ मिला रहा था तभी वे लड़के मेरे सामने से गुजरे और उनमें से एक लड़का थोड़ा बगलकर निकलने की बजाये जानबूझकर मुझे धकेलते हुए अकड़पन में निकल गया।मैंने सिर्फ इतना कहा था कि- "देख के चल लो भाई'' बात बस इतनी ही थी कि उसके साथ के दूसरे लड़के मुझसे हाथापाई पर उतर आये।   ''तन्ने बोल्या कैसे??'' "तू जाणे है मन्ने??"                                                 मुझे चारों तरफ से घेर लिया गया और बुरी तरह धक्का-मुक्की

कुछ तो है तेरे मेरे दरमियाँ.."-कविता

कुछ तो है तेरे मेरे दरमियाँ... .............................. कुछ तो है तेरे मेरे दरमियाँ.. तू मुझे वहाँ दुआएँ देती है, और मुझे यहाँ नेमतें मिलती हैं। कुछ तो है... तू वहाँ उदास होती है, मन मेरा यहाँ उचटता है। तू वहाँ पे साँसें भरती है, दिल मेरा यहाँ धड़कता है।     कुछ तो है तेरे मेरे दरमियाँ,     तू मुझे वहाँ दुआएँ देती है,     और मुझे यहाँ नेमतें मिलती हैं, कुछ तो है... तू वहाँ पे कलियाँ बोती है, मुझे यहाँ बगीचे मिलते हैं। तू वहाँ दीये जलाती है, मुझे यहाँ रौशनी मिलती है।     कुछ तो है तेरे मेरे दरमियाँ...     तू मुझे वहाँ दुआएँ देती है,     और मुझे यहाँ नेमतें मिलती हैं.. कुछ तो है... तू मुझे वहाँ याद करती है, मैं यहाँ हिचकियाँ लेता हूँ। तू वहाँ आँखें भिगोती है, मैं यहाँ सिसकियाँ लेता हूँ।     कुछ तो है तेरे मेरे दरमियाँ...     तू मुझे वहाँ दुआएँ देती है,     और मुझे यहाँ नेमतें मिलती हैं.. कुछ तो है... तू वहाँ मुस्काया करती है, मैं यहाँ खिलखिलाने लगता हूँ। तू मुझे वहाँ निहारा करती है, मुझमें यहाँ निखार आता है।     कुछ तो है तेरे मेरे दरमिया

गुजरात और 'नोटा'-लेख

                     गुजरात और 'नोटा'           गुजरात के जनादेश के कांग्रेस-बीजेपी जो भी मायने निकालते हों, निकालें। जिस भी दृष्टि से अपनी पीठ थपथपाना चाहते हों, थपथपालें! वे इसके लिए स्वतन्त्र हैं। पर इस जनादेश का एक पक्ष ऐसा भी है जिस पर इनका ध्यान नहीं जा रहा है! और जाये भी तो क्यों?? और वो है 'नोटा' (NOTA-None Of  The Above) को मिले तकरीबन साढ़े पाँच लाख से अधिक वोट का । दरअसल NOTA विकल्प के अंतर्गत मतदाताओं को किसी भी उम्मीदवार को नापसन्द करने का अधिकार दिया गया है। इस विकल्प की व्यवस्था के लिए जनहित याचिकाओं के दबाव में सर्वप्रथम भारतीय निर्वाचन आयोग ने ही 2001 में सर्वोच्च न्यायालय में अपील की थी। जिस पर संज्ञान लेते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने एक लम्बी कालावधि के बाद 27 सितम्बर 2013 को EVM (Electronic Voting Machine) में NOTA विकल्प को स्थापित करने के आदेश दिए थे। जिसका प्रयोग सर्वप्रथम 2014 के लोकसभा चुनाव में हुआ ।              अब लौटते हैं अपने मूल विषय पर। 2017 के इस विधानसभा चुनाव में गुजरात में पड़े नोटा के मत गुजरात में NCP को मिले कुल मत से अधिक है। साथ ह

माननीय मुख्यमंत्री योगी जी के नाम खुला-पत्र

माननीय मुख्यमंत्री(उत्तर प्रदेश) योगी आदित्यनाथ जी के नाम खुला पत्र- ------------------------------------------------- प्रिय योगी जी, प्रणाम !                                 सर्वप्रथम आपको मुख्यमंत्री बनने की हार्दिक बधाई। आशा करता हूँ कि आप प्रदेश की जनता की उम्मीदों पर खरा उतरेंगे और जैसा कि प्रदेश के सभी वर्गों का आपको साथ मिला है, उसे भी आप तठस्थ होकर निभाएंगे।                     प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में स्वच्छता का जो 'आंदोलन' और विकास की जो 'रीति' चली है,  उसे जनता का भी भरपूर साथ मिल रहा है, पर इसका फ़लक राजनैतिक और सामाजिक ही अधिक है। आधुनिकता की दौड़ में सुचिता और विकासशीलता का सांस्कृतिक पक्ष छूटता जा रहा है। हमें भौतिक विकास के साथ-साथ सांस्कृतिक विकास पर भी ज़ोर देना होगा।   किसी भी देश की संस्कृति भाषा 'से' और भाषा 'में' निर्मित होती है, जिसमें उस संस्कृति के धारक सोचते हैं,लिखते हैं,पढ़ते हैं,बोलते हैं और करते हैं। ख़ासतौर से मातृभाषा में, जिसमें हमारे मानसिक विकास की नींव पड़ती है और जिसम